सक्षम-अक्षम: एक दृष्टिकोण आज समय की चाहत

DISABILITY

डां प्रवीण कुमार अंशुमान (Dr. Praveen Kumar Anshuman) Academician

4/10/20251 min read

सक्षम-अक्षम: एक दृष्टिकोण आज समय की चाहत

डां प्रवीण कुमार अंशुमान

(Dr. Praveen Kumar Anshuman) Academician

10 April 2025

New Delhi

सक्षम अक्षम की सारी बातें

व्यर्थ ही लोग किया करते हैं

अपने भाई-बंधु के बीच

दीवारें खड़ी किया करते हैं

आँखें भी यहां एक समान

कहां कभी देखा करती हैं

शुद्ध-बुद्ध-आत्मन को सदा

हर पल ही ये चूका करती हैं

भेद यहां पग-पग पे दिखता

अभेद नज़र नहीं आता है

अभेद दृष्टि का स्वामी तो

कभी भेद नहीं कर पाता है

चेहरों पर मुस्कान लिए कुछ

दिल को सदा काला रखते हैं

सक्षम अक्षम की सारी बातें

व्यर्थ ही लोग किया करते हैं

अपने भाई-बंधु के बीच

दीवारें खड़ी किया करते हैं

छोटी बड़ी उंगलियां हैं सारी

पर नहीं कभी वो लड़ती हैं

नाक, कान, मुख, हाथ सब

अपना ही काम बस करती हैं

नहीं कहीं नीचे ऊपर का भेद

नहीं कहीं कोई बड़ा छोटा है

इतनी-सी समझ बस लाने में

जीवन पूरा निकल जाता है

दकियानूसी बातों में फंसकर

सदा जीने से सच को डरते हैं

सक्षम अक्षम की सारी बातें

व्यर्थ ही लोग किया करते हैं

अपने भाई-बंधु के बीच

दीवारें खड़ी किया करते हैं

कौन यहां समर्थ है साथी!

और कौन यहां है असमर्थ

एक पहलू में निष्णात कोई

तो दूसरे का नहीं जाने अर्थ

कुछ ना कुछ में कमज़ोर जो

वो मज़बूत कहीं पर होता है

जिस ओर से देखो जीवन को

उस जैसा ही लगने लगता है

शक्ति की नज़र होती जिनमें

वे सबमें ही शक्ति देख लेते हैं

सक्षम अक्षम की सारी बातें

व्यर्थ ही लोग किया करते हैं

अपने भाई-बंधु के बीच

दीवारें खड़ी किया करते हैं।

डॉ० प्रवीण कुमार अंशुमान

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